Wednesday, February 02, 2011

Re: [astrostudents] Lalkitab

 

 
Sir,
 
Please translate following paragraph in English, If possible
 
Thanks

  
 
 
"Make light around you," said the fire.


--- On Wed, 2/2/11, Jesal Sagar <jesalsagar@yahoo.com> wrote:

From: Jesal Sagar <jesalsagar@yahoo.com>
Subject: [astrostudents] Lalkitab
To: astrostudents@yahoogroups.com
Date: Wednesday, February 2, 2011, 4:42 PM

 
These words are written by D.S.Thakurji ..
Who have personally met panditji ..

Just wanted to share this wid the group members ..

'हाथ रेखा को समुद्र गिनते, नजूमे फलक का काम हुआ,

इल्म क्याफा ज्योतिष मिलते, लाल किताब का नाम हुआ ।''

लाल किताब के इस शेयर पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि इल्म, क्याफा और ज्योतिष के संगम को लाल किताब कहा गया है। इस किताब के पांच हिस्से सन् 1939 और 1952 के दरमियान उर्दू ज़ुबान में छपे। सन् 1952 वाले आखिरी हिस्से को मुकम्मल लाल किताब कहा जा सकता है। हालांकि किताब पर लेखक का नाम नही है मगर इसमें कोई शक नही कि लाल किताब की रचना आलिम पंडित रूप चन्द जोशी जी ने की थी। 

पंडित जी फौज से असिस्टैंट अकाउंट अफसर रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव फरवाला, तहसील नूरमहल, ज़िला जालन्धर, पंजाब में रहते थे। मुझे उनसे मेरे ताया जी कर्नल पी.पी.एस. ठाकुर ने मिलवाया था। पहली बार उनसे मैं 1975 में मिला। फिर मुलाकातों का सिलसिला कुछ साल जारी रहा। ताया जी की वजह पंडित जी मुझपर मेहरबान रहे। उनसे कई मुलाकातें हुई और बेशुमार बातें हुई। लाल किताब भी मुझको पंडित जी ने ही दी थी। जिसे मैं उनका आर्शीवाद समझता हूं। किताब को पढ़ने समझने के लिए मुझे बकायदा उर्दू सीखना पड़ा। लाल किताब क्या है ...गागर में सागर है ।

पंडित जी के बारे में ताया जी ने मुझे कई बातें बताई। उनसे कई मुलाकातों से भी काफी जानकारी मिली। उनका कुण्डली देखने का तरीका भी अलग था। पंडित जी लाल कलम से जो लिख देते थे वह अक्सर पूरा हो जाता था। इस इल्म को शायद ही कोई ओर समझा हो। दरअसल पंडित जी एक गैर मामूली इन्सान थे। लाल किताब भी गैबी ताकत से उर्दू ज़ुबान में लिखी गई थी। मेरे पूछने पर पंडित जी ने खुद बताया था, ''पता नही कौन मुझे लिखाता रहा।'' शायद यही वजह रही कि किताब पर लेखक का नाम नही है।

वक्त के साथ-साथ लाल किताब इतनी मकबूल हुई कि आज बाज़ार में नकल या नकली किताबों की बाढ़ सी आ गई है और असली लाल किताब उर्दू वाली कहीं नज़र नही आती। नकली किताब पढ़कर कई सज्जन खुद को लाल किताब का माहिर कहने लगे हैं। हालांकि उनको यह भी नही पता कि इसे लाल किताब क्यों कहा गया। उर्दू आता नही, असली किताब देखी नही और माहिर बन बैठे। बस नकली का बोलबाला है। अफसोस की बात यह है कि लाल किताब के नाम पर लूट शुरू हो गई है। लोग भी वनस्पति घी को असली घी समझ रहे हैं। 

लाल किताब के मुताबिक हर ग्रह के दो पहलू हैं, नेक और बद। यानि नेक हालत और मन्दी हालत। लिहाज़ा असली किताब नेक और नकली किताब बद है। अब नकली किताब के नतीजे मन्दे न होंगे तो और क्या होंगे ? वैसे भी जो किताब जिस ज़ुबान में लिखी गई हो, उसको उसी ज़ुबान में पढ़ना बेहतर होता है। नकली किताब में जान प्राण नही होते। वह मुर्दा ही होती है। इसलिए अगर हो सके तो असली किताब को ही पढ़ा समझा जाये। इसी से कुशल मंगल होगा।

Written by my mentor .. D.S.Thakurji ..


Regards
Jesal Sagar.

__._,_.___
Recent Activity:
.

__,_._,___

No comments: